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  🌻क्या ईश्वर सृष्टिकृर्ता है🌻 प्रश्न:-जब परमात्मा के शरीर ही नहीं,तो संसार कैसे बना सकता है,क्योंकि बिना शरीर के न तो क्रिया हो सकती है और न कार्य हो सकता है? उत्तर:-यह भी तुम्हारी भूल है।चेतन पदार्थ जहां पर भी उपस्थित होगा,वहां वह क्रिया कर सकेगा और क्रिया दे सकेगा।जहां पर उपस्थित नहीं होगा वहां पर शरीर आदि साधनों की आवश्यकता पड़ेगी।देखो,मैने यह पुस्तक उठाई।किससे उठाई? हाथ से। अगर हाथ न होता तो मैं यह पुस्तक उठा सकता था या नहीं? उत्तर मिला -नहीं। प्रश्न-हाथ ने तो किताब को उठाया,अब बताओ हाथ को किसने उठाया? उत्तर-हाथ को अपनी शक्ति ने उठाया। प्रश्न:-और जो मैं अपने शरीर को हिला रहा हूं,बताओ किससे हिला रहा हूं? उत्तर:-अपनी शक्ति से। समाधान:-तुम तो कहते थे कि बिना शरीर के कोई क्रिया नहीं हो सकती।फिर बिना शरीर के इस शरीर को क्रिया कैसे मिल गई? पता चला चेतन और उसकी शक्ति जहां-जहां मौजूद हैं वहां-वहां उसे शरीर की आवश्यकता ही नहीं। जीवात्मा शरीर के भीतर होने के कारण सारे शरीर को क्रिया देता है,और शरीर से बाहर के पदार्थों को शरीर से क्रिया देता है क्योंकि वहां वह उपस्थित नहीं है। परमात्मा बाहर
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    भोजन विधि का वैज्ञानिक रहस्य... शास्त्रों में पैर धोकर तथा एक वस्त्र ऊपर ओढ़कर और फिर पूर्व अथवा उत्तर आदि मुख बैठकर एकान्त में भोजन करना बतलाया गया है, जहां पर अन्य सर्व साधारण की दृष्टि न पड़े। भोजन का स्थान पवित्र, गोमय आदि से लिपा हुआ अथवा जल आदि से शुद्ध होना चाहिए, अपवित्र व्यक्ति का सम्पर्क न होना चाहिए। इन सब में वैज्ञानिक रहस्य है। कहा गया है... "आयुष्यं प्राङ, मुखो भुङ क्ते यशस्यं दक्षिणामुखः।" अर्थात् आयु की इच्छा वाले को पूर्वमुख तथा यशेच्छुक को दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भोजन करना चाहिए। इसका कारण यह है कि पूर्व दिशा से प्राणशक्ति का उदय होता है। सूर्य देवता प्राणस्वरूप हैं, जो इस दिशा से उदय होते हैं। अतः इस पूर्व दिशा की ओर मुख करके भोजन करने से आयु बढ़ेगी। दक्षिण की ओर पितृ देवताओं का वास रहता है उस ओर मुख करके भोजन करने से यश प्राप्त होता है। प्राणशक्ति पूर्व दिशा में रहने के कारण पूर्व की ओर पैर करके सोने का भी निषेध किया गया है क्योंकि प्राणशक्ति पैरों के द्वारा निकल कर मनुष्य को क्षीण बना देगी। यह विज्ञानसिद्ध है कि मनुष्य के पैरों की ओर से विद्युत्शक्
 !!! हमारे ऋषियों और मुनियों द्वारा किये आविष्कार  !!!       ===============    आचार्य कणाद :  कणाद परमाणुशास्त्र के जनक हैं। आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले  आचार्य कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं। भास्कराचार्य  :-  आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई हजार  पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया।    भास्कराचार्यजी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।   आचार्य चरक : - चरकसंहिता जैसा महत्तवपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक आयुर्वेद विशेषज्ञ व ‘त्वचा चिकित्सक’ भी बताए गए हैं। आचार्य चरक ने शरीरविज्ञान गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन खोज की। आज के दौर की सबसे ज्यादा होने वाली डायबिटीज, हृदय रोग व क्षय रोग जैसी बीमारियों
  परमात्मा से पहले कोई पूर्णता तुम्हें रोके तो रूकना नहीं। एक पुरानी सूफी कथा है, एक फकीर जंगल में ध्यान करता और एक लकड़हारा रोज लकडियां काटता था। फकीर को उस की गरीबी पर दया आ गई, बह लकड़हारा बहुत बूढ़ा था। उसका शरीर तो बलिष्ठ था, पर उसकी बाल सफेद और कमर झुक गई थी। रोज सुबह से शाम तक जंगल में लकड़ी काटते-काटते उसकी उम्र गुजर गई।और बचे बुढ़ापे के दिनों में अब कोई आस भी नहीं थी। क्योंकि अब तो वह इतना काम भी नहीं कर सकता था। तब साधु ने उसे बुलाया और कहां, सारी उम्र हो गई पागल तेरे को यहां लकड़ी काटते, तू जरा ओर आगे भी तो जा कर कभी देख…तो उस लकड़हारे ने कहां आगे जाने से क्या होगा। सारी उम्र तो कट गई। अब दूर जाने का साहस भी नहीं है मेरे पास। और आगे भी तो ऐसा ही जंगल होगा।यहां पूरी उम्र गँवाई एक बार मेरी बात मान कर आगे और आगे…. भी देख। काफी ना नुच करके वह मरे मन से आगे गया ।      आगे अभी मील भर आगे भी नहीं गया था कि लकड़हारा क्या देखता है वहां तो तांबे कि एक बहुत बड़ी खान है।तब वह जितना तांबा ला सकता था उतना ला-ला कर रोज बेचने लगा। ए
  वीर सिपाही की अंतिम इच्छा जब मेने आतंकवादियो कि गोली से मारे गये , वीर सिपाही के शरीर के पास से उसकी डायरी को उठाया , तो उसके संस्मरणों में मेने उसकी "अंतिम इच्छा " को इस तरहा लिखा हुआ पाया , मेरी लम्बी सेवा में पुलिस थाने के अलावा ऐसा कोई सरकारी कार्यालय नजर नहीं आया , जहाँ मैने पुरे साल 24 घण्टे कभी ताला लटका नहीं पाया , मेरी जिन्दगी में कभी छुट्टी का सन्डे या मंडे नहीं आया , जब हर तरफ जगमगाई दीपो कि लाली तो मेने भी बनाई दीपावली , जब रंग गुलाल उड़ाती निकली मस्तानो कि टोली तो मेरे मन भी भा गई होली ,       टूट ना जाये ताले कहीं , पड़े न खलल चैन में , मैने बैचेन आँखों में नींद डूबोली , धुप सर्दी और बारिश भी न कर पाये मेरे जोश को ठंडा, मै तो करता रहा डूयटी हाथ में लेके डण्डा , सच कहु ख्य़ाल तो मेंरे भी मन में बहुत आये , घर जाकर बीवी से बतियाऊ , पिक्चर ले जाऊ, मेला घुमाऊ, बच्चों को पढ़ाऊ, थपकी देकर सुलाऊ , पर कमबखत ड्यूटी ने आफत डाली , कभी मन मसोला डाला कभी कल पे बात टाली , ज़माने ने भी देखा तो हिकारत से देखा, गलती पे खाई अफसर कि डाटे
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  मत्स्य, कूर्म और वराह अवतार – किस ओर संकेत करते हैं? भारतीय परम्परा में भगवान के पहले अवतार को मत्स्य यानी मछली के रूप में जाना जाता है। इसके बाद कछुए और फिर सूअर और इस तरह ये क्रम आगे बढ़ता है। किस ओर संकेत करते हैं ये अवतार? क्रमिक विकास के बारे में जो कुछ भी आदि योगी ने बताया है, वह डार्विन के विकासवाद की परिकल्पना जैसा ही है। डार्विन ने अपने सिद्धांत को केवल डेढ़ सौ साल पहले प्रतिपादित किया था, लेकिन वही बात आज से करीब पंद्रह हजार वर्ष पहले आदि योगी शिव ने बता दी थी। दोनों ने ही एक जैसे क्रम का जिक्र किया है। क्रमिक विकास के बारे में बताते हुए आदि योगी ने कहा था कि जीवन का पहला रूप मत्स्य अवतार था। क्रमिक विकास का सिद्धांत डार्विन का नहीं है, यह तो हमेशा से रहा है। हमने इसके पीछे के विज्ञान को समझा है और हम जानते हैं कि यह हमारे भीतर है। मैं अपने अनुभव से भी यही बात कह रहा हूं। इसका अर्थ हुआ कि ईश्वर मत्स्य के रूप में प्रकट हुए। आपको पता ही है कि चाल्र्स डार्विन ने यह साबित करने की कोशिश की थी कि इस धरती पर जीवन का प्रथम रूप जल में ही पैदा हुआ, यानी यह
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  नथनी एक बार कबीरदास जी हरि भजन करते एक गली से निकल रहे थे। उनके आगे कुछ स्त्रियां जा रही थी। उनमें से एक स्त्री की शादी कहीं तय हुई होगी तो उसके ससुरालवालों ने शगुन में एक नथनी भेजी थी। वह लडकी अपनी सहेलियों को बार - बार नथनी के बारे में बता रही थी कि नथनी ऐसी है वैसी है। ये खास उन्होने मेरे लिए भेजी है। बार बार बस नथनी की ही बात। उनके पीछे चल रहे कबीरजी के कान में सारी बातें पड़ रही थी। तेजी से कदम बढते कबीर उनके पास से निकले और कहा- नथनी दीनी यार ने, तो चिंतन बारम्बार, नाक दिनी करतार ने, उनको दिया बिसार। सोचो यदि नाक ही ना होती तो नथनी कहां पहनती ! यही जीवन में हम भी करते है। भौतिक वस्तुओं का तो हमें ज्ञान रहता है परन्तु जिस परमात्मा ने यह दुलर्भ मनुष्य देह दी और इस देह से संबंधित सारी वस्तुऐं, सभी रिश्ते-नाते दिए, उसी को याद करने के लिए हमारे पास समय नही होता।