🌻क्या ईश्वर सृष्टिकृर्ता है🌻

प्रश्न:-जब परमात्मा के शरीर ही नहीं,तो संसार कैसे बना सकता है,क्योंकि बिना शरीर के न तो क्रिया हो सकती है और न कार्य हो सकता है?

उत्तर:-यह भी तुम्हारी भूल है।चेतन पदार्थ जहां पर भी उपस्थित होगा,वहां वह क्रिया कर सकेगा और क्रिया दे सकेगा।जहां पर उपस्थित नहीं होगा वहां पर शरीर आदि साधनों की आवश्यकता पड़ेगी।देखो,मैने यह पुस्तक उठाई।किससे उठाई?
हाथ से।

अगर हाथ न होता तो मैं यह पुस्तक उठा सकता था या नहीं?

उत्तर मिला -नहीं।

प्रश्न-हाथ ने तो किताब को उठाया,अब बताओ हाथ को किसने उठाया?

उत्तर-हाथ को अपनी शक्ति ने उठाया।

प्रश्न:-और जो मैं अपने शरीर को हिला रहा हूं,बताओ किससे हिला रहा हूं?

उत्तर:-अपनी शक्ति से।

समाधान:-तुम तो कहते थे कि बिना शरीर के कोई क्रिया नहीं हो सकती।फिर बिना शरीर के इस शरीर को क्रिया कैसे मिल गई?
पता चला चेतन और उसकी शक्ति जहां-जहां मौजूद हैं वहां-वहां उसे शरीर की आवश्यकता ही नहीं।

जीवात्मा शरीर के भीतर होने के कारण सारे शरीर को क्रिया देता है,और शरीर से बाहर के पदार्थों को शरीर से क्रिया देता है क्योंकि वहां वह उपस्थित नहीं है।

परमात्मा बाहर भीतर सर्वत्र विद्यमान है,इसलिए उसे शरीर की जरुरत नहीं पड़ती।वह सारे संसार में व्यापक होने के कारण सारे संसार को क्रिया देता है।

प्रश्न:-शक्ल वाला ही शक्ल वाली चीज को बनाता है,जैसे हलवाई,सुनार आदि।
निराकार परमात्मा जगत को कैसे बना सकता है?

उत्तर:-जितने शक्ल वाले कर्त्ता हैं,वे अपने से बाहर की चीजों को बनाते हैं,अपने भीतर की चीजों को नहीं।बाहर की चीजों के लिए हाथ-पैर की जरुरत है,भीतर के लिए नहीं।परमात्मा से कोई चीज बाहर नहीं,इसलिए उसे शरीर की आवश्यकता नहीं।

हलवाई अपने से बाहर की चीजें बनाता है,यदि उन्हें अपने शरीर के भीतर ही बनाने लगे तो उसे खायेगा कौन?
और फिर उसे हाथ पैरों की आवश्यकता ही क्या है?
शरीर के भीतर रस,रक्त,मांस,हड्डी आदि पदार्थ बिना हाथ,पैरों के ही बन रहे हैं।

एक बात पर विचार और करो कि इन्द्रियां बाहर की चीजें बनाती हैं और बाहर की चीज ही देखती हैं अगर भीतर की चीजें देखने लग जायें तो जीना भारी हो जाये।यह तो भगवान की कृपा है,जो इन्द्रियां बाहर की चीजों को देखती हैं।

दूसरी बात,संसार की समस्त चीजें प्रकृति के परमाणुओं से बनी हैं।संसार में आज तक कोई ऐसा यन्त्र नहीं बना,जो परमाणुओं को पकड़ कर जोड़ सके।परमाणु वे सूक्ष्म तत्व हैं जिनके टुकड़े नहीं हो सकते।

परमात्मा उन परमाणुओं के बाहर भीतर सर्वत्र विद्यमान है,इसलिए वह उन्हें जोड़कर सूक्ष्म से सूक्ष्म और स्थूल से स्थूल जगत बना लेता है।

संसार के जड़ पदार्थों में परमाणु सबसे सूक्ष्म हैं।परमात्मा उनसे भी अधिक सूक्ष्म है और इसलिए वह उनमें व्यापक है।अगर व्यापक न होता तो सृष्टि बनाने में उसे भी अन्य कर्त्ताओं की क्रिया का आश्रय लेना पड़ता,जैसा कि संसार के मनुष्यादि प्राणियों को अन्य कर्त्ताओं व क्रियाओं का सहारा लेना पड़ता है।

अतः सिद्ध हुआ ,प्रत्येक कर्त्ता अपनी क्रिया में व्यापक ही होता है,जहां तक उसकी क्रिया की जिम्मेदारी है।

रहा यह प्रश्न कि बिना हाथ पैरों के चीजें कैसे बन जाती हैं?अगर यह मान लिया जाए कि हर चीज हाथ पैरों से ही बनती है तो जो हाथ पैर चीज बनाते हैं,वे हाथ पैर किससे बने हैं?

हाथ,पैर भी तो बने हुए हैं।जब हाथ-पैर बिना हाथ-पैरों के बन सकते हैं,तो सृष्टि के अन्य पदार्थ बिना हाथ पैरों के क्यों नहीं बन सकते?

मैं पूछता हूं ,माता के पेट में जो बच्चा बन रहा है,क्या हाथ पैरों से बन रहा है?
पृथ्वी पर नाना प्रकार के अंकुर उत्पन्न होकर वृक्ष का रुप धारण कर रहे हैं,क्या उन्हें हाथ पैरों से बनाया जा रहा है?
और देखो,हाथ पैर तो हाथ पैरों से ही सम्बन्ध रखने वाली चीज ही बना सकते हैं,दूसरी चीजें नहीं बना सकते।हाथ पैरों से छोटे छोटे कीटाणु मच्छर और भुनगे तथा उनके सूक्ष्म अंग कैसे बना सकते हैं।?

जिस पृथ्वी पर मनुष्यादि प्राणी रहते हैं।उसकी परिधि 25000 मील है।,इससे भी लाखों करोड़ों गुणों बड़े सूर्य,बृहस्पति आदि ग्रह हैं,ये सबके सब-हाथों से कैसे बनाये जा सकते हैं?
इन समस्त पदार्थों को नियमपूर्वक बनाने वाला सर्वशक्तिमान सर्वव्यापक परमात्मा ही है।वही सारा कार्य नियमपूर्वक चला रहा है।

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